बीवी को चोदने का मज़ा ही कुछ और है
मेरी ये Hindi sex story भले ही थोड़ी छोटी है, लेकिन मुझे यकीन है कि मेरी ये sex story आपको भरपूर मजा देगी।

शादी के बाद पहली छुट्टी मिलने पर, सुमन और रिमी दोपहर का समय अपने-अपने अंदाज़ में साथ बिताना चाहती थीं। बाहर बारिश हो रही थी। पानी धीरे-धीरे खिड़की के शीशे से नीचे लुढ़क रहा था, मानो हर बूँद उन्हें प्यार की गहराइयों में डूबने का न्योता दे रही हो।
रिमी पतली सफ़ेद साड़ी पहने खिड़की के पास बैठी थी। उसके गीले बालों से पानी टपककर उसकी गर्दन से नीचे गिर रहा था, जिससे उसका शरीर काँप रहा था। हल्की ठंड में उसकी छाती का बीच का हिस्सा थोड़ा काँप रहा था, लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे उसके शरीर के अंदर कोई अनजानी आग जल रही हो।
सुमन धीरे से पीछे से आया और उसे गले लगा लिया। उसने धीमी आवाज़ में कहा, "आज मैं तुम्हें एक नए अंदाज़ में देख रहा हूँ, रिमी... ये बारिश... ये खुशबू... तुम्हारा शरीर मुझे अपनी ओर खींच रहा है।"
रिमी ने एक बार उसकी तरफ देखा और हल्के से मुस्कुराई, उसकी आँखों में शर्मिंदगी और आकर्षण की मिली-जुली चमक थी। उसने कहा, "तुम तो हमेशा चुप रहते थे... आज इतने पागल क्यों हो?"
सुमन के होंठ उसकी गर्दन पर, फिर उसके कान पर, फिर धीरे-धीरे उसकी छाती पर आ गए। रिमी ने आँखें बंद कर लीं। उसकी साड़ी का किनारा हट गया, जिससे उसकी चिकनी त्वचा, उसके स्तनों की उठती-गिरती लहरें दिखाई देने लगीं।
"ओह... सुमन... ऐसा मत करो..." रिमी ने काँपती आवाज़ में कहा, लेकिन उसके दोनों हाथों ने सुमन की पीठ को कसकर पकड़ रखा था।
बिस्तर पर लेटे-लेटे वे एक-दूसरे में समा गए। सुमन के होंठ रिमी की छाती से लेकर कमर तक चुपचाप सुमन के होंठों से छू गए, और रिमी के होंठों से एक गहरी आह निकली, "आह... रुकना मत... आज मैं सिर्फ़ तुम्हारी हूँ..."
बारिश की आवाज़ के बीच उनके मिलन की आवाज़ और भी मधुर होती जा रही थी। तन की गंध, पसीने की गर्माहट और प्यार के रोमांच के मेल ने उन पलों को अविस्मरणीय बना दिया।
आख़िरकार, रिमी ने अपना सिर सुमन की छाती पर रख दिया और मन ही मन बोली, "मैं पहले कभी इतनी गहराई में नहीं डूबी..."
सुमन ने उसके बालों पर हाथ रखा और कहा, "तुम बारिश की तरह शांत हो, फिर भी अंदर से कितनी डरावनी और रोमांचक हो... आज तुमने मुझे निगल लिया, रिमी..."
कमरे में अभी भी वासना की खुशबू फैल रही थी। बाहर बारिश थम गई थी, फिर भी कमरे के अंदर एक अजीब सी गर्माहट अभी भी थी... गहरा प्यार और जिस्मों का सैलाब।
बरसाती दोपहर - दूसरा दौर
कमरे के अंदर हल्की रोशनी, खिड़की के बाहर अभी भी बूंदाबांदी हो रही थी। बिस्तर पर सन्नाटा, सुमन के स्पर्श की गर्माहट अभी भी रिमी के शरीर पर बनी हुई थी। रिमी पसीने की महक, प्यार और तृप्ति के एहसास के भंवर में आँखें बंद किए लेटी थी। अचानक उसे लगा—सुमन का हाथ फिर से उसकी पीठ पर धीरे-धीरे फिर रहा है।
जैसे ही उसने आँखें खोलीं और देखा, सुमन मुस्कुराई और बोली,
"क्या तुमने सोचा था कि मैं इतनी जल्दी खत्म कर दूँगी?"
रिमी हँसी, फिर बोली,
"क्या तुम... फिर से?"
सुमन ने अपने होंठ उसके कान के पास लाए और फुसफुसाया,
“तुम अब भी कितनी कोमल हो… कितनी गर्म… मैं एक बार फिर तुम्हारे अंदर खो जाना चाहता हूँ, रिमी…”
रिमी का दिल काँप उठा। उसने चुपचाप अपनी आँखें बंद कर लीं और अपने होंठ सुमन की ओर बढ़ा दिए। अब सुमन के होंठ उसके होंठों पर थे, उसके गले से होते हुए उसकी छाती के बीचोंबीच। रिमी का सीना ऊपर-नीचे होने लगा… उसके होंठ खाली हो गए और एक दबी हुई बुदबुदाहट निकली,
“आह… सुमन… अब थोड़ा धीरे… मेरा दम घुट रहा है…”
सुमन ने अब धीरे से अपनी जांघें फैला दीं... उसने धीरे-धीरे अपने हाथ उस वर्जित जगह पर फिराने शुरू कर दिए, जहाँ रिमी के शरीर की सारी भावनाएँ केंद्रित थीं। रिमी ने अब खुद अपनी कमर उठाई और जवाब देने लगी, उसकी आँखों और चेहरे पर एक अनजानी प्यास थी।
"क्या तुम मुझे फिर से पागल करना चाहते हो?" रिमी की आवाज़ काँप रही थी।
"मैं तुमसे पागलों की तरह प्यार करती हूँ..." - सुमन ने कहा और फिर से उसके शरीर में समा गई।
उनके शरीर में फिर से मिलन की अजीब धुन बजने लगी। बिस्तर हिल गया, और बारिश की आवाज़ के साथ, सिर्फ़ रिमी की आवाज़ें एक के बाद एक फैलती रहीं, ठंडी खुशी से भरी...
"उफ़... आह... सुमन... तुममें इतनी ताकत है... मैं अब और नहीं सह सकती..."
लेकिन सुमन नहीं रुका, उसने रिमी को पलट दिया और उसके अंदर और गहराई तक डूब गया। रिमी के बाल बिखरे हुए थे, गला सूखा था, शरीर पसीने से भीगा हुआ था, लेकिन उसकी आँखें और चेहरा संतुष्टि की एक अलग ही दुनिया से भर गए थे।
आख़िरकार, सुमन थककर रिमी के शरीर पर गिर पड़ा। रिमी ने धीरे से उसका माथा चूमा और बोली,
"तुम सिर्फ़ मुझसे प्यार करोगी... ऐसे ही, सिर्फ़ मुझसे, है ना?"
सुमन आँखें बंद किए हुए भी मुस्कुराया, "मुझे तुम्हारे शरीर में अपनी दुनिया मिलती है... मुझे और कुछ नहीं चाहिए।"
बरसात की दोपहर - तीसरा दौर
कमरे की हवा भारी थी, चादर अभी भी रिमी के पसीने से सनी हुई थी। खिड़की के बाहर बारिश थोड़ी कम हो गई थी, लेकिन कमरे के अंदर, सुमन का शरीर अभी भी गर्म था, उसकी आँखों और चेहरे पर गहरी प्यास थी।
रिमी करवट लेकर लेटी हुई थी, उसकी आँखें आधी बंद थीं। सुमन उसके पीछे आया और उसकी पीठ सहलाते हुए उसके कान में फुसफुसाया,
"तुम्हारा शरीर अभी भी काँप रहा है... क्या तुम थक गई हो? क्या तुम्हें और चाहिए?"
रिमी हल्के से मुस्कुराई और बोली,
"क्या तुम्हारा काम अभी पूरा नहीं हुआ, सुमन?"
सुमन के होंठ अब रिमी की पीठ पर सरक गए। उसके गले में एक घुटी हुई साँस आई, "तुम्हारा जिस्म मुझे किसी लत की तरह लग रहा है... मैं इसे छूना बंद नहीं कर सकती..."
रिमी थोड़ा ऊपर उठकर बैठ गई, उसके बाल बिखरे हुए थे, बदन पर सिर्फ़ एक पतली चादर थी। उसने धीरे से चादर उतार फेंकी। उसकी नग्नता सुमन की आँखों में आग लगा रही थी।
रिमी ने अब सुमन के सीने पर अपने होंठ रखने की पहल की। फिर वह नीचे की ओर बढ़ने लगी... सुमन की आँखें संतुष्टि से बंद हो गईं।
"रिमी... तुमने ऐसा पहले कभी नहीं किया..."
"मैं आज तुम्हारे लिए सब कुछ कर रही हूँ..." - रिमी ने सुमन को खुद अपने बदन पर बुलाते हुए कहा।
सुमन ने अब सुमन को अपनी गोद में उठा लिया और अपने ऊपर बिठा लिया... रिमी के होंठ काँप रहे थे, उसकी आँखों में बिजली दौड़ रही थी। सुमन के बदन पर बैठ कर वह धीरे-धीरे नाचने लगी, अपनी कमर हिलाने लगी... सुमन उसके बदन के नीचे और भी गर्म हो गया।
रिमी ने धीमी, काँपती आवाज़ में कहा,
“तुम्हारा मेरे अंदर इस तरह होना... मुझे लग रहा है जैसे मैं अपना ही शरीर खो रही हूँ... आह... सुमन...”
तीसरे राउंड में, वे उठे और एक-दूसरे से मिल गए... दीवार से सटकर, सुमन ने रिमी को कसकर गले लगाया और उसे फिर से अपने अंदर ले लिया। रिमी के गले से एक दबी हुई कराह निकली...
“उफ़... आह... मैं अब और नहीं सह सकती... सुमन... तुम मुझे चीर रही हो... लेकिन रुकना मत... अभी रुकना मत...”
सुमन को पसीना आ रहा था, रिमी का शरीर काँप रहा था... लेकिन संभोग के उस पल में, मानो समय रुक गया हो। रिमी के नाखून सुमन की पीठ को खरोंच रहे थे, वह अपने होंठ काट रही थी...
आखिरकार, दोनों थकान से पसीने से लथपथ बिस्तर पर गिर पड़े।
रिमी ने सुमन के कान के पास मुँह लगाया और बोली,
"तुम्हारा ये प्यार... ये पागलपन... मुझे पागल कर रहा है। अब मैं तुम्हारे बिना कुछ और सोच भी नहीं सकती..."
सुमन मुस्कुराया। खिड़की के बाहर अब बारिश नहीं थी। लेकिन घर के अंदर? हालाँकि बारिश का तीसरा दौर थम गया था, फिर भी उसका गुस्सा काफ़ी देर तक रहा। दोस्तो, सच कहूँ तो अपनी बीवी को चोदने का मज़ा ही कुछ और है।